Friday, May 20, 2011

दिल दे दिया है, जान भी देंगे, सब्जी नहीं लायेंगे सनम

टैक्सी ड्राइवर ने रेडियो मिर्ची चला रखा था। दोपहर का वक्त था इसलिए पुराने गाने बज रहे थे। यह गाना सुना: "दिल दे दिया है, जान भी देंगे, दगा नहीं देंगेे सनम।' मुझे हंसी आ गई। यह गाना कम से कम तीस साल पुराना होगा। न जाने कितनी बार युवक-युवतियों ने गुनगुनाया होगा, एक दूसरे को रोमांटिक पलों में सुनाया होगा। मन ही मन सोचा होगा कि हम इतना प्यार करते हैं कि उसके लिए जान भी दे देंगे। कहां गया वह प्यार? ये रोमानी "यालात दिल बहलाने के लिए अच्छे हैं लेकिन प्यार जब यथार्थ की कसौटी पर कसा जाता है तब सारा रोमांस रफूचक्कर हो जाता है।
यकीन नहीं होता? तो फिर घर-घर  जाकर  रोज होनेवाले डायलॉग सुनिये। प्रेमी के लिए "चांद और सूरज बीच गगन से इस धरती पर उतार दूं' कहनेवाला युवक पति बनने के बाद ऊपर रक्खा हुआ डिब्बा उतारने में झुंझलाता है, दफ्तर से आते हुए सब्जी ले आना उसे तौहीन लगती है। वह प्रेमिका को बादलों से पार तो ले जा सकता है लेकिन जुहू बीच घुमाने नहीं ले जा सकता। और प्रेमी की आंखों में डूबने की बातें करने वाली पत्नी पास बैठे हुए पति को देखने की बजाय  टीवी पर किसी हीरो को देखना ज्यादा पसंद करती है।
प्यार के साथ ये हादसे क्यों होते हैं? ये कोई आज के किस्से नहीं हैं , सदियों से होते चले आ रहे  हैं। जरा गौर करें, जिनके अमर प्रेम की कहानियां सुनाई जाती हैं वे सभी प्रेमी ऐसे हैं जिनका कभी मिलन नहीं हुआ: शीरीं-फरहाद, सोहनी-महिवाल, हीर-रांझा, रोमियो- जुलियेट, और भी बहुत सारे। इतिहास में उन प्रेमियों कि कोई  दास्तान नहीं है जो साथ रहने लगे।
क्यों? क्योंकि गृहस्थी की आग में तवे पर रोटी ही नहीं जलती, प्रेम भी जलकर राख हो जाता है-- वह प्रेम जो महज रूमानी कल्पनाओं और शेरो शायरी पर आधारित हो।(http://oshovani.blogspot.com)

No comments:

Post a Comment